

पहलवान एक असाधारण व्यक्ति होता है। केलव उनका व्यायाम और डाइट प्लान आश्चर्यजनक रूप से कठिन नहीं होते बल्कि उनका अभ्यास भी अलग होता है। यहां हम आपके लिए अखाड़ा वर्कआउट प्लान लाएं है।
आपने महान गामा और दूसरे प्रसिद्ध पहलवानों के बारे में सुना होंगा। पर क्या आपको पता है, कि ऐसी शारीरिक संरचना, मानसिक शक्ति और डाइट प्राप्त करने कि लिए कितना खून, मिट्टी और आंसूओं की आवश्यक्ता होती है? पहलवानों की व्यायाम प्रक्रिया जो उनहें पहलवान बनाती है को समझने से पहले आपकों एक पहलवान की मानसिकता को समझना होगा।
अगर आपने योग और आर्युवेद से सम्बन्धित लेख पढ़े हैं तो आपको पता होगा कि इनके तीन गुण हमारे जीवन की प्रकृति को निर्धारित करते हैं। इसके अनुसार, ज्यादातर पहलवान मांसाहार नहीं करते है, फिर भी कुछ पहलवान मांस खाते हैं। एक पहलवान से अपेक्षा की जाती है कि वह ना केवल अखाड़े को साफ-सुथरा रखे बल्कि अपने शारीरिक और मानसिक दोनों की पौष्टिकता पर भी ध्यान दें। और ऐसा करना उनका परम कर्त्तव्य भी है तब जाकर वे अपने खेल में शिखर तक पहुंच सकते हैं। यह मानसिकता जीवन के दूसरे पक्षों को भी प्रभावित करता है। युवा पहलवानों को बचपन से ही कुश्ती के गुण सिखाए जाते हैं क्योंकि ज्यादातर बच्चे पहलवानों के परिवार से ही आते हैं। यहां सबसे ज्यादा ध्यान देनेवाली बात यह है कि जैसे ही कोई युवा अखाड़े में प्रवेश करता है उसका भौतिक सुख पीछे छूट जाता है, तब पैसे की भूख, परिवार, जात और धर्म केवल नाम मात्र बनकर ही रह जाते हैं। पहलवान की इस मानसिक स्थिति को ‘जीवनमुक्ति’ कहा जाता है। इसका अर्थ यह हुआ की आपको अपने शरीर पर ध्यान देना है पर एक बॉडीबिल्डर की तरह नहीं। यहां इस पर ध्यान नहीं दिया जाता कि शरीर कैसा दिखता है बल्कि इसपर ध्यान दिया जाता है कि शरीर कैसे कार्य कर रहा है। शरीर को पहलवानी या कुश्ती के अनुरूप ढ़ालने के लिए कुछ विशेष व्यायाम है जिसे करना पड़ता है जिसे देसी जिम भी कहते हैं|

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सुबह से दोपहर की दिनचर्या
पहलवान की दिनचर्या बहुत सख्तरूप से अनुशासित होती है। कुश्ती करने से पहले पहलवान को सुबह के चार बजे ऊठना पड़ता है और कंपाउंड के कुछ चक्कर दौड़ कर लगाने पड़ते हैं। कुश्ती के लिए तैयार होने का मतलब है कि आपने अपने शरीर पर तेल लगाया है और फिर आप अखाड़े में आकर कसरत करते हैं।
आज की पीढ़ी बहुत आतुर रहती है और इनहें पहले से ही प्री वर्कआउट की आदत होती है, इनहें पता ही नहीं होता कि कैसे पहलवान अपने शरीर को व्यायाम के लिए तैयार करता है। कसरत करने से पहले पहलवान मैदान को खोदते है, फिर गड्ढ़े में छाछ, तेल और लाल मिट्टी मिलाते है फिर वहां से छोटे पत्थर निकालते हैं ताकि कुश्ती के दौरान पहलवान को चोट ना लगे। फिर भी गड्ढा इतना पक्का होना चाहिए कि कुश्ती करते वक्त दांव लगाने में बाधा ना आए और पहलवान कुश्ती के तकनीक का इस्तेमाल अच्छी तरह कर सके।
इसके बाद आता है बाऊट जिसे ज़ोर करते हैं, इसका शाब्दिक मतलब शक्ति होता है। धर्म, स्थान के अनुसार, उस्ताद या खलीफ़ा या मास्टर कुश्ती के बाउट्स को सुपरवाईज़ करता है जिसमें दो विरोधी पहलवान एक दुसरे को पटकनी देते हैं। कुश्ती में लक्ष्य यह होता है कि कैसे विरोधी के कंधे को जमीन तक झूकाएं हालांकि जीत के लिए अगल तरीके भी होते हैं जिन्हें ज़ोर का सही इस्तेमाल कर पाप्त किया जा सकता है लेकिन ज़ोर का अभिप्राय दोनो पहलवानों के लिए केवल बाऊट से नहीं है इसलिए दोनों पहलवानों को एक साथ मिलकर सीखना चाहिए ताकि सभी तरह के व्यायाम अखाड़ें में हो सके। सबसे वरिष्ठ पहलवान को सबसे पहले और सबसे कम अनुभवी को सबसे अंतिम में मैदान में जाना चाहिए, इसके बाद जूनियर पहलवानों को मालिश या मसाज करना चाहिए। मालिश पहलवान के मानसिक व्यायाम के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। सबसे छोटे और अनुभवहीन को अपने से वरिष्ठ पहलवानों की मालिश करनी होती है जो की एक आदर और सदभाव दिखाने की एक प्रक्रिया है। कुश्ती की आदर भाव दिखाने की यह प्रक्रिया धर्म और जात-पात की सभी दीवारों को गिरा देती है, इस प्रकार कुश्ती लोगो को लोगो से जोड़ती है|

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पहलवाल का आहार
पहलवानों का खाना सचमुच दिलचस्प होता है। बिना संपूर्ण आहार के अखाड़े के राजा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। पहलवानों के आहार का एक पवित्र त्रिशंकु होता है जिसमें घी, दूध और बादाम आते हैं और इनकी मात्रा भी भरपूर होती है। यह सर्वविदित है कि प्रसिद्ध गामा पहलवान चार लीटर दूध, घी और बादाम के घोल को पचा जाते थे। वैसे पहलवान जो मांसाहारी हैं उनके लिए चिकन से बनी मीट सूप, जिसे याकनी भी कहते है, दो पावरोटी के साथ श्रेष्ट माना जाता है।
भले ही आप भरोसा करें या ना करें लेकिन यह खाना दिन के केवल एक पहर का खाना है। डीनर में भी इसी मात्रा में खाना खाया जाता है। अब हम समझ सकते हैं कि आप आश्चर्य में पड़ चुके होंगे की कोई व्यक्ति इतना खाना कैसे खा सकता है? नीचे अखाड़े में की जाने वाले कसरतों का व्यख्यान है, इन्हें देख कर कोई इन्हें शेर की उपाधी दे तो मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा।

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एक पहलवान की कसरतें
कूश्ती के बाद पहलवान अखाड़े में कसरत करता है और कंपाउंड मूवमेंट का अभ्यास करता है। तब जाकर पहलवान को मल्टी जॉइंट मूवमेंट में महारथ हासिल होती है। पहलवानों की सारी कसरतों का केंद्र दंड (जैकचाकू की तरह ऊठक-बैठक) और बैठक (घुटने के बल बैठना) होते हैं। कसरत का अनुपात- दंड व्यायाम से बैठक व्यायाम दोगुना होती है। एक स्वस्थ पहलवान कम से कम 1000 दंड और 2000 बैठक करता है।
दूसरे अखाड़ा कसरत शरीर के अन्य भाग को मजबूत बनाते हैं जैसै की तैराकी जिसे मूंगली भी कहते है, जोकि कंधे को मजबूत बनता है और जोरी जिसमें लकड़ी के कल्ब या गदा या मेस का प्रयोग किया जाता है यह भी कंधे को मजबूत बनाता है। ये कसरतें कुश्ती में सबसे मानी जातीं हैं । समान्यत: कुश्ती की प्रतियोगिता में विजय होने वाले पहलवान को सोने या चांदी के बने गदा इनाम स्वरूप दिए जाते है।
• रूस्तम-ऐ-हिंद: दारा सिंह भारत के चैम्पियान थें।
• रूस्तम-ऐ-पंजाब: पंजाब का चैम्पियन
• केसरी: महाराष्ट्र का शेर
• भारत केसरी: बेस्ट हैवीवेट चैम्पियन
• रूस्तम-ऐ-ज़माना: विश्व चैम्पियन। महान गामा पहलवान विश्व चैम्पिय घोषित किये गए थें।
जाहिर तौर पर अब कहा जा सकता है कि पहलवान की कसरत कोई बच्चों का खेल नहीं है। कुश्ती का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि यह इंसान को मानसिक रूप से जात-पात, धर्म और रंगभेद के दीवारों को तोड़कर एक दूसरे से जोड़ती है। और हाँ, एक और चीज़ जो पहलवानों से हम सीख सकते हैं, वह है इनका सख्त अनुशासन।